कहा पृथ्वी ही शिवलिंग है, श्रावण माह में संपूर्ण विश्व भगवान शंभू का आराधना व उत्सव में मग्न हो जाते हैं
केसीजी से राशिद जमाल सिद्दीकी की रिपोर्ट
केसीजी(छत्तीसगढ़):अनंत श्री विभूषित ज्योतिष पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य श्यामपुर कांपा से पधारे मोहन नारायण शास्त्री जी ने कहा कि ब्रह्मांड ही शिवलिंग है । ब्रह्मांड में पृथक पृथक अनंत शिवलिंग है । संपूर्ण जगत शिव स्वरूप , जगत ही शिव है । अलग-अलग युग में भगवान शिव अलग-अलग स्वरूप में प्रकट होते हैं ।
शिव को श्रावण मास अति प्रिय है
सतयुग में भगवान शिव नर नारायण के रूप में प्रकट हुए । त्रेता युग में भगवान शिव राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न के रूप में प्रकट हुए । द्वापर युग में भगवान शिव श्री कृष्ण बलदाऊ के रूप में प्रकट होते हैं तो कलयुग में भगवान शिव कल्कि अवतार रूप में प्रकट होते हैं ।चार वेद छै शास्त्र अठारह पुराण अठारह उपपुराण एक सौ आठ उपनिषद शिव जी का स्वरूप है ।कल्प भेद के कारण अलग अलग युग के कारण अलग-अलग अवतारों का पुराणों में वर्णन है ।शिवजी का मुख्य रूप से पांच स्वरूप है । आकाश स्वरूप पृथ्वी स्वरूप अग्नि स्वरूप वायु स्वरूप अलग-अलग ऋतु में भगवान शिव का पूजन का अलग-अलग विधान है ।लेकिन वर्षा ऋतु भगवान शिव को विशेष प्रिय है ।ऋतु में परम पवित्र पुनीत पावन श्रावण मास अति प्रिय है ।
पुष्प भगवान का श्रृंगार है
श्रावण मास में संपूर्ण विश्व भगवान शंभू का आराधना व उत्सव में मग्न हो जाते हैं ।पृथ्वी ही शिवलिंग है ,देवराज इंद्र वर्षा के द्वारा शिव अभिषेक करते हैं ।घास दुर्वा ,बेलपत्र ,अनेक प्रकार के पुष्प भगवान का श्रृंगार है । आकाश में जो इंद्रधनुष चमकता है ,वही शिव का त्रिपुंड है । सूर्य दीपक है तो बादल का गर्जना मधुर मधुर संगीत है ।वर्षा ऋतु का फल भगवान शिव का नैवेद्य ।इस प्रकार तैतिस कोटि देवताओं प्रतिनिधित्व करते हुए देवराज इंद्र भगवान शिव का अभिषेक पूजन करते हैं । ऐसा दृश्य हमें दिखाई दे तो हम भी हाथ जोड़कर जहां है वहीं खड़ा होकर इस माहा अमृत अभिषेक में शामिल होकर महान पुण्य का भागी बन सकते हैं ।