रांची से सुमित शर्मा की रिपोर्ट
रांची(झारखंड): अपने हरे-भरे जंगलों, लुढ़कती पहाड़ियों और समृद्ध आदिवासी संस्कृति झारखंड की पहचान है।यंहा कृषि,काफी हद तक बारिस पर निर्भर है। इसलिए मानसून की वर्षा कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।किसान बेसब्री से बारिश का इंतजार करता है। जो चिलचिलाती गर्मी से राहत देता है और जल संसाधनों को फिर से भर देता है। हालाँकि मानसून बाढ़, जलभराव और बाधित कनेक्टिविटी जैसी चुनौतियाँ भी लाता है।
झारखंड में मानसून का आगमन और अवधि
आमतौर पर झारखंड में मानसून जून के दूसरे सप्ताह में आता है। जो दक्षिण-पश्चिम मानसून बंगाल की खाड़ी शाखा से प्रभावित होता है। यह मौसम सितंबर के मध्य तक रहता है। जिसमें जुलाई और अगस्त में सबसे अधिक बारिश होती है। राज्य में औसतन वार्षिक वर्षा लगभग 1,200 से 1,400 मिमी तक होती है।हालाँकि वितरण क्षेत्रों में भिन्न होता है।
क्षेत्रीय भिन्नताएँ

जंहा उत्तर और मध्य झारखंड क्रमश: रांची, हजारीबाग, धनबाद में मध्यम से भारी वर्षा होती है तथा दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्र क्रमशःपलामू, गढ़वा, लातेहार में तुलनात्मक रूप से कम वर्षा होती है। जिससे कभी-कभी सूखे जैसी स्थिति पैदा हो जाती है।वंही पूर्वी झारखंड क्रमशः साहेबगंज, पाकुड़, दुमका में गंगा और उसकी सहायक नदियों के निकट होने के कारण बाढ़ की आशंका बनी रहती है।
कृषि पर मानसून का प्रभाव

कृषि झारखंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। जिसमें धान, मक्का और दालें प्रमुख फसलें हैं।मानसून यंहा काफी महत्वपूर्ण है।किसान धान और मक्का की बुवाई के लिए ससमय बारिश पर निर्भर रहते हैं इसलिए यंहा मानसून महत्वपूर्ण है।मानसून में ही यंहा भूजल पुनर्भरण होता है ।बारिश से कुएँ और तालाब भर जाते हैं।सिंचाई के लिए झारखंड सरकार द्वारा पहाड़ी नदी-नालो पर जगह-जगह चेकडेम बनाया गया है ।जिससे सिंचाई में काफी मदद मिलती है। मानसून की बारिश के कारण सारंडा और पलामू सहित घने जंगल पनपते हैं और वन की वृद्धि होती है।हालांकि, अनियमित वर्षा और देरी से आने वाले मानसून के कारण अक्सर फसलें बर्बाद हो जाती हैं,जिससे ग्रामीण आजीविका प्रभावित होती है।
मानसून में कई चुनौतियाँ
झारखंड में मानसून एक वरदान और चुनौती दोनों है। यह कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखता है। लेकिन अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और जलवायु परिवर्तनशीलता इसके जोखिमों को बढ़ाती है। मानसून के समय स्वर्णरेखा, दामोदर और बराकर जैसी नदियाँ अक्सर उफान पर रहती हैं। जिससे निचले इलाकों में बाढ़ आ जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों, खासकर नेतरहाट और पारसनाथ में भूस्खलन होता है। जिससे सड़क संपर्क बाधित होता है। रांची ,जमशेदपुर सहित अन्य शहरी इलाकों में कमोवेश खराब जल निकासी की समस्या के कारण सड़कें जलमग्न हो जाती हैं। मानसून के दौरान मलेरिया, डेंगू और डायरिया जैसी जलजनित बीमारियाँ बढ़ जाती हैं। सरकार और समुदाय की प्रतिक्रिया झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (जेएसडीएमए) बाढ़ की चेतावनी जारी करता है और राहत प्रयासों का समन्वय करता है। हांलाकि राज्य सरकार द्वारा किसानों को सूखा प्रतिरोधी फसलें और वर्षा जल संचयन तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
